जलवायु परिवर्तन की अनदेखी चुनौती: मीथेन का बढ़ता खतरा

Apr 17, 2025, 4:40 PM | Skymet Weather Team
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(प्रतीकात्मक) फोटो क्रेडिट: Canva

जब हम जलवायु परिवर्तन की बात करते हैं, तो ज़्यादातर चर्चाएं कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) के इर्द-गिर्द घूमती हैं। लेकिन एक और ताक़तवर गैस है जो अक्सर नज़रअंदाज़ हो जाती है—मीथेन (Methane)संयुक्त राष्ट्र यूरोपियन इकनॉमिक कमीशन (UNECE) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, अल्पकालिक असर के लिहाज़ से मीथेन की गर्मी बढ़ाने की क्षमता CO₂ से 80 गुना ज़्यादा है।

अच्छी खबर?

मीथेन की उम्र वायुमंडल में मात्र 12 साल होती है। यानी अगर हम आज कदम उठाएं, तो असर दशकों नहीं, कुछ ही सालों में दिख सकता है। यही मीथेन को ग्लोबल वार्मिंग धीमी करने का सबसे तेज़ और असरदार रास्ता बनाता है।

तो यह मीथेन आता कहां से है?

जवाब हमारे रोज़मर्रा के जीवन से जुड़ी प्रणालियों में छिपा है—विशेषकर कृषि क्षेत्र में, जो दुनिया भर में करीब 40% मीथेन उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार है:

धान की खेती में जब खेत लंबे समय तक भरे रहते हैं, तो वहां ऐसे जीवाणु सक्रिय हो जाते हैं जो मीथेन उत्पन्न करते हैं।

गाय और भैंस जैसे पशुओं के पाचन तंत्र में भी मीथेन बनता है।

यदि जानवरों के गोबर को सही तरीके से न संभाला जाए, तो वह मीथेन का एक बड़ा स्रोत बन सकता है।

मीथेन सिर्फ पृथ्वी को गर्म नहीं करता, बल्कि यह ज़मीन की सतह पर ओज़ोन को भी बढ़ाता है—जो हमारी सांसों, फसलों और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरनाक है। यानी यह एक पर्यावरणीय ही नहीं, स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा का मुद्दा भी है।

तो इसे मापा कैसे जाता है?

बॉटम-अप तरीका: जैसे, एक गाय से औसतन कितनी मीथेन निकलती है—इसका अनुमान लगाना।

टॉप-डाउन सैटेलाइट डेटा: उपग्रहों से सीधी नज़र रखना। कई बार ये आंकड़े ज़मीन के अनुमानों से कहीं ज़्यादा निकलते हैं।

इससे यह ज़रूरी हो जाता है कि हमारे पास ऐसे सिस्टम हों जो दोनों नज़रों को मिलाकर सही तस्वीर दें।

अच्छी खबर ये है कि समाधान पहले से मौजूद हैं।

क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर यानि जलवायु अनुकूल खेती एक व्यवहारिक रास्ता है। कुछ बेहतरीन रणनीतियाँ हैं:

  • धान की खेती में वैकल्पिक सिंचाई अपनाना, जिससे मीथेन कम होता है और पानी की भी बचत होती है।
  • पशुओं के चारे में सुधार, जैसे समुद्री शैवाल आधारित आहार, जो उत्सर्जन घटाता है।
  • बायोगैस संयंत्रों के माध्यम से गोबर को स्वच्छ ऊर्जा में बदला जाना।

भारत भी अपने राष्ट्रीय बायोगैस मिशन के तहत इस दिशा में काम कर रहा है। भले ही वह ग्लोबल मीथेन प्रतिज्ञा का हिस्सा न हो, लेकिन देश स्थानीय, टिकाऊ समाधान खोजने में आगे बढ़ रहा है।

अब आगे क्या?

ज़रूरत है ऐसे शोध और नीतियों की जो सिर्फ आंकड़ों पर नहीं, बल्कि ज़मीन पर किसानों के लिए असरदार हों। विशेष रूप से दक्षिण एशिया को ऐसी जानकारी चाहिए जो उसके खास मौसम, संसाधनों और संस्कृति को ध्यान में रखे।

मीथेन शायद जलवायु परिवर्तन की पूरी समस्या का हल न हो, लेकिन यह एक ऐसा पक्ष है जहां विज्ञान, तकनीक और नीति पहले से तैयार हैं। और CO₂ के उलट, इसके नतीजे जल्द दिखाई दे सकते हैं।

शायद मीथेन ही वह अनदेखा अवसर है जो हमें जलवायु संकट से निपटने में सबसे तेज़ मदद कर सकता है।

(Deccan Herald की एक रिपोर्ट से प्रेरित)

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