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[Hindi] देश के ज्यादातर भागों में सक्रिय रहेगा मॉनसून | मध्य, पूर्व और उत्तर भारत के कुछ इलाकों में तेज़ वर्षा के आसार | मुंबई में मॉनसून होगा सुस्त और बारिश में रहेगी कमी | चेन्नई सहित दक्षिण भारत के कुछ शहरों में सक्रिय मॉनसून की उम्मीद

August 20, 2019 12:05 PM |

स्काइमेट ने जैसा अनुमान लगाया था अगस्त के पहले पखवाड़े में देश के कई इलाकों में भारी वर्षा देखने को मिली। मॉनसून का सबसे अच्छा प्रदर्शन मध्य भारत के राज्यों में दिखा। इसमें मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात शामिल हैं। जुलाई के आखिर से जब मॉनसून सक्रिय हुआ उसके बाद से लेकर अब तक अच्छी वर्षा के चलते देश में कुल बारिश सामान्य से 2% अधिक हो चुकी है, जो मॉनसून की शुरुआती महीनों में हुई बारिश की तुलना में बहुत अच्छी बारिश है।

स्काइमेट के पास उपलब्ध बारिश के आंकड़ों के अनुसार 1 जून से 18 अगस्त के बीच देश भर में कुल 626 मिलीमीटर वर्षा रिकॉर्ड की गई है जो औसत 612.1 मिलीमीटर बारिश की तुलना में 2 फ़ीसदी अधिक है। अलग-अलग क्षेत्रों की अगर बात करें तो मध्य भारत में सामान्य से 15% अधिक वर्षा हुई है।

इसी तरह दक्षिण भारत में भी सामान्य से 5% ज्यादा बारिश हुई है। लेकिन पूर्वी तथा पूर्वोत्तर राज्यों में बारिश अभी भी 15% पीछे है। उत्तर और उत्तर पश्चिम भारत में पिछले हफ्ते के आखिरी दिनों में हुई मूसलाधार वर्षा के चलते बारिश के आंकड़ों में काफी सुधार हुआ और अब महज 2% की कमी रह गई है। आने वाले दिनों में मॉनसून के सक्रिय बने रहने की संभावना है।

मॉनसून बना रहेगा सक्रिय 

कुछ समय पूर्व तक मौसम से जुड़े ज्यादातर मॉडल मॉनसून के कमजोर होने का संकेत दे रहे थे। लेकिन वर्तमान परिदृश्य बिल्कुल विपरीत है। वर्तमान में अधिकांश मॉडल पिछले समय से उलट स्थितियाँ दिखा रहे हैं। प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान में उतार-चढ़ाव को ईएनएसओ की स्थिति के लिए अनुकूल माना जाता है। दूसरी तरफ आईओडी भी हिंद महासागर में लगातार मजबूत हो रहा है। यह स्पष्ट कर दें कि अल नीनो के कमजोर होने और आईओडी के प्रभावी होने के कारण यह लगभग साफ हो चुका है कि मॉनसून अब सक्रिय बना रहेगा।

Read MDs take in English: ACTIVE MONSOON CONDITIONS TO PREVAIL IN THE COUNTRY, HEAVY RAINS LIKELY IN CENTRAL, EASTERN AND NORTHERN PARTS OF INDIA

इस सप्ताह कहाँ होगी ज़्यादा बारिश

आने वाले दिनों में सक्रिय मॉनसून का सबसे अधिक फायदा मध्य पूर्वी और उत्तर भारत के राज्यों को मिलेगा। इन भागों में ज्यादातर जगहों पर मध्यम तो कुछ स्थानों पर भारी वर्षा देखने को मिलेगी। इस सप्ताह उम्मीद है कि ओडिशा, पश्चिम बंगाल, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश वह राज्य होंगे जहां पर मॉनसून का व्यापक प्रदर्शन दिखेगा और मध्यम से भारी वर्षा दर्ज की जाएगी।

इन क्षेत्रों में कमजोर रहेगा मॉनसून

दूसरी तरफ उत्तर भारत के पर्वतीय इलाकों में ज़्यादातर स्थानों से लेकर हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, राजस्थान, गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्र तक मॉनसून का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहेगा। इन भागों में इस सप्ताह बारिश बहुत कम देखने को मिलेगी।

दक्षिण भारत की बात अगर करें तो तमिलनाडु, रायलसीमा और दक्षिणी आंतरिक कर्नाटक में कुछ स्थानों पर रुक-रुक कर मॉनसून वर्षा के आसार हैं। केरल में मध्यम से हल्की वर्षा जारी रहने की संभावना है। पश्चिमी घाट जहां पर बीते दिनों मॉनसून ने तांडव किया था वहां मॉनसून के प्रभावी होने की संभावना नहीं है। इसलिए बाढ़ वाली बारिश की आशंका भी नहीं है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में भी मॉनसून कमजोर रहेगा और यहां बेहद मामूली वर्षा के आसार फिलहाल हैं।

चेन्नई इस बार मॉनसून में कम बारिश के चलते सूखे मौसम से संघर्ष कर रहा था। जहां पिछले दिनों में भारी वर्षा हुई और चेन्नई के लोगों को बहुप्रतीक्षित राहत मिली। इस सप्ताह के शुरुआती तीन-चार दिनों के दौरान चेन्नई और आसपास के शहरों में इसी तरह मॉनसून वर्षा जारी रहने की संभावना है।

फसलों पर मौसम का प्रभाव

इस सप्ताह मॉनसून के प्रदर्शन को ध्यान में रखते हुए इसके फसलों पर प्रभाव की बात करें तो ज्यादातर खरीफ फसलें वानस्पतिक वृद्धि की अवस्था में हैं। 1 अगस्त से 15 अगस्त के बीच मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के कुछ भागों, कर्नाटक, गुजरात और राजस्थान के कुछ जिलों में हुई भारी मॉनसून वर्षा का फसलों पर बुरा प्रभाव देखने को मिला है।

फसलों में क्रॉप विल्टिंग और रूट राइटिंग की बीमारियों का प्रभाव देखने को मिल रहा है। खासकर जहां पर भारी वर्षा हुई थी उन क्षेत्रों में। दूसरी ओर जिन भागों में लंबे समय से बारिश नहीं हो रही थी वहां अच्छी वर्षा के चलते मिट्टी में पर्याप्त नमी इकट्ठा हो गई है। इसका फायदा फसलों को मिलेगा। लेकिन भारी बारिश के कारण जहां पर फसलों में फूल बनने लगे थे वहां ज्यादातर फसलों को नुकसान हुआ है, क्योंकि फूल गिर गए हैं। इससे दाने भरने में कठिनाई होगी और फसलों की उत्पादकता प्रभावित हो सकती है। साथ ही गुणवत्ता भी कम हो सकती है।

Image credit: First Post

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