उत्तराखंड में हिमस्खलन से हुई कई मौतें, इस सप्ताह भी खतरा बरकरार

Mar 3, 2025, 6:20 PM | Skymet Weather Team
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माणा में हुए हिमस्खलन में फंसे मजदूर को रेस्क्यू करती सेना, PTI

उत्तराखंड के चमोली जिले के माणा में 10,500 फीट से अधिक की ऊंचाई पर एक बड़ा हिमस्खलन हुआ। यह भयावह हादसा शुक्रवार, 28 फरवरी के सुबह में हुआ था, जिसमें बीआरओ (Border Roads Organization) के 54 मजदूर फंस गए। इस हादसे में 8 मजदूरों की जान चली गई, जबकि 46 को बचा लिया गया। वहीं, बचाए गए मजदूरों में 2 की हालत गंभीर बनी हुई है।

भारी बर्फबारी और हिमस्खलन का कारण

लगातार सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) के कारण कश्मीर घाटी, जम्मू संभाग, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के मध्य और ऊंचे इलाकों में बहुत भारी बर्फबारी हुई थी। फरवरी के आखिरी सप्ताह और मार्च की शुरुआत में पूरे पहाड़ी क्षेत्र भारी हिमपात की चपेट में रहे हैं। इस कारण से कश्मीर और जम्मू संभाग में भी हिमस्खलन (Avalanche) की घटनाएं हुई थी।

माणा इलाके में हुई आपदा के बाद गुलमर्ग में भी भारी बर्फबारी के कारण 1 मार्च 2025 को हिमस्खलन हुआ था। वही, जम्मू के किश्तवाड़ क्षेत्र में भी एक और हिमस्खलन हुआ। इस दौरान कई गांवों से संपर्क मार्ग टूट गए, जिससे निवासियों को आपदा वाले इलाकों से बाहर निकालने की जरूरत पड़ी। हालांकि, इन घटनाओं में किसी की जान जाने की खबर नहीं है।

हिमस्खलन क्या होता है और यह कितना खतरनाक है?

हिमस्खलन (Avalanche) तब होता है जब तेज़ और लगातार हो रही बर्फबारी के कारण ढलानों पर जमा हुई बर्फ बड़े ढेर के रूप में अचानक नीचे गिरती है। यह भूकंप की तरह एक 'बिना सूचना' वाली आपदा है, अंतर यह है कि एक व्यापक क्षेत्र में हिमस्खलन के बारे में कुछ अनुमान लगाया जा सकता है। हालांकि सटीक स्थान और समय का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है।

जब हिमस्खलन होता है तो बर्फ के विशाल ढेर तेजी से लुढ़कते हैं और इसमें फंसी हवा के कारण बहुत तेज़ गर्जना होती है। इसकी गति गोली की रफ्तार जैसी होती है, जिससे बचने का कोई मौका नहीं मिलता। यह अपने साथ बर्फ, मिट्टी और चट्टानों को नीचे की ओर खींचता है, जिससे इसके रास्ते में आने वाली हर चीज़ नष्ट हो जाती है – चाहे वो इमारतें हों, पेड़ हों, सामग्री हो या इंसान।

हिमस्खलन का खतरा कब और कहां ज्यादा रहता है?

हिमस्खलन का खतरा केवल भारी बर्फबारी के दौरान ही नहीं बल्कि बर्फबारी रुकने के बाद भी कई दिनों तक बना रहता है। 10,000 फीट और इससे अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र सबसे ज्यादा संवेदनशील होते हैं। जब कोई मौसम प्रणाली आगे बढ़ती है और आसमान साफ़ हो जाता है, तो सूरज की रोशनी से तापमान बढ़ने लगता है, जिससे बर्फ का निचला हिस्सा पिघलने लगता है। इस कारण से हिमस्खलन की संभावना बर्फबारी रुकने के बाद भी 3-4 दिनों तक बनी रहती है। इसलिए, जिन पहाड़ी इलाकों में बहुत भारी बर्फबारी हुई है, उन इलाकों में हिमस्खलन की चेतावनी अभी भी जारी है। इसीलिए इन क्षेत्रों में पर्यटकों और स्थानीय निवासियों को सावधानी बरतने की जरूरत है।

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