बरसेंगे बादल, स्काइमेट और IMD दोनों ने जताया अच्छी बारिश का अनुमान, मानसून 2025 से खेती-किसानी को नई उम्मीद

Apr 16, 2025, 6:45 PM | Skymet Weather Team
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स्काइमेट निजी मौसम पूर्वानुमान कंपनी है, जो 2012 से भारत में मानसून की भविष्यवाणी कर रही है। स्काईमेट ने पिछले सप्ताह ही अपने मौसमी पूर्वानुमान में आने वाले दक्षिण-पश्चिम मानसून को "सामान्य" बताया था। स्काइमेट ने 103% LPA (लॉन्ग पीरियड एवरेज) वर्षा की संभावना जताई है, जिसमें ±5% की त्रुटि सीमा है। इसके ठीक बाद भारत की राष्ट्रीय मौसम एजेंसी ने भी 2025 के मानसून सीजन को "सामान्य से ऊपर" बताते हुए 105% LPA की वर्षा का अनुमान दिया है। भारत में मानसून की भविष्यवाणी करने वाली दो ही प्रमुख एजेंसियां हैं, जिसमें एक है Skymet और दूसरी है राष्ट्रीय मौसम विभाग (IMD)। इनके अलावा अगर कोई और एजेंसियां अनुमान लगाती भी हैं, तो उनके आंकड़े और विश्लेषण उतने विस्तार से और भरोसेमंद नहीं होते।

probability of monsoon 2025, june through september (JJAS) by skymet

स्काइमेट का विस्तृत मानसून विश्लेषण

स्काइमेट ने आने वाले मानसून सीजन के लिए न सिर्फ पूरे मौसम का अनुमान दिया है, बल्कि हर महीने और देश के चार प्रमुख भौगोलिक क्षेत्रों (उत्तर-पश्चिम भारत, मध्य भारत, दक्षिण प्रायद्वीप, पूर्वोत्तर भारत) में वर्षा वितरण का भी विस्तृत ब्यौरा दिया है। इससे आम लोगों और किसानों को ये समझने में आसानी होगी कि किस इलाके में कब और कितनी बारिश हो सकती है। अगर मौसम में कोई बड़ा बदलाव होता है (जो कि संभावना बहुत कम है), तो सीजन के बीच में पूर्वानुमान में सुधार किया जा सकता है। यानी स्काईमेट मानसून की निगरानी लगातार करता रहेगा और ज़रूरत पड़ने पर अपडेट देगा।

June Through September (JJAS) Monsoon Forecast

राष्ट्रीय एजेंसी का अनुमान भी लगभग मिलता-जुलता

राष्ट्रीय मौसम एजेंसी (IMD) ने भी पूरे देश के लिए सामान्य से बेहतर मानसून का पूर्वानुमान दिया है। अगर इसके क्षेत्रवार वितरण को ध्यान से देखें, तो यह स्काइमेट के अनुमान से काफी मेल खाता है। दोनों के अनुमान में बहुत ही मामूली फर्क है और यह अंतर भी प्राकृतिक रूप से स्वीकार्य है। कुल मिलाकर, दोनों ही बड़ी एजेंसियों के पूर्वानुमान लगभग एक जैसे हैं और देश के अलग-अलग हिस्सों के लिए समान दिशा में इशारा कर रहे हैं, जिससे इस साल मानसून को लेकर उम्मीदें मजबूत हो गई हैं

दोनों मानसून पूर्वानुमानों में समानता

कुल मिलाकर स्काइमेट और राष्ट्रीय मौसम एजेंसी दोनों संस्थानों का मानसून 2025 पूर्वानुमान लगभग एक जैसा है। क्षेत्रवार बारिश के आंकड़े भी इतने करीब हैं कि ऐसा लगता है जैसे एक दूसरे की प्रतिलिपि हों। दोनों एजेंसियों ने पूर्वोत्तर भारत और उत्तर भारत के पहाड़ी इलाकों में बारिश को लेकर थोड़ी अनिश्चितता जताई है। यानी इन क्षेत्रों में बरसात सामान्य से थोड़ी कम हो सकती है या स्थिति स्पष्ट नहीं है। इसलिए इसे "grey area" कहा गया है। लेकिन, देश के बीच के हिस्से यानी मध्य भारत, जो मुख्य रूप से खरीफ की फसलें उगाने वाला क्षेत्र है। यहाँ पर सामान्य से अधिक या अच्छी बारिश की संभावना जताई गई है। ये वही क्षेत्र हैं जहां खेती लगभग पूरी तरह मानसून पर निर्भर होती है।

खेती के लिए बड़ी राहत

भारत में लगभग 50% खेती मानसून की बारिश पर निर्भर करती है। ऐसे में जब दोनों प्रमुख एजेंसियों का पूर्वानुमान एक जैसा और सकारात्मक हो, तो यह किसानों और कृषि क्षेत्र के लिए उम्मीद और राहत की खबर है। यह इस बात का संकेत है कि इस साल खरीफ की फसलों के लिए मौसम अनुकूल रह सकता है।

103% बनाम 105% - मामूली लेकिन अर्थपूर्ण अंतर

वहीं, मौसम विभाग (सरकारी एजेंसी) ने कहा है कि इस साल 105% बारिश हो सकती है। यह "Above Normal" (सामान्य से ज्यादा) बारिश की कैटेगरी में आता है, जो 105% से 110% के बीच होती है। दोनों पूर्वानुमानों में केवल 2% का अंतर है, जो बहुत छोटा और समझने लायक है। इसका मतलब ये हुआ कि दोनों एजेंसियाँ लगभग एक जैसी बात कह रही हैं,पहली यह कि बारिश अच्छी होगी और दूसरी बात खेती के लिए अच्छी उम्मीद बनी हुई है। इसलिए इन दो पूर्वानुमानों को अलग-अलग नहीं, बल्कि एक जैसे और सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जाना चाहिए।

मानसून का कृषि पर प्रभाव

भारत में खेती का बड़ा हिस्सा मनसून पर निर्भर करता है। यानी किसानों की फसलें इस बात पर टिकी होती हैं कि बारिश कितनी और कब होगी। इसलिए मानसून की बारिश खेती के लिए सबसे अहम फैक्टर मानी जाती है। हालांकि अर्थशास्त्री (economists) यह भी कहते हैं कि सिर्फ ये जान लेना कि इस बार बारिश सामान्य से ज्यादा (above normal) होगी, यह नहीं जताता कि फसलें अच्छी ही होंगी।

बारिश का सही समय और सही जगह पर होना जरूरी

रेटिंग एजेंसी क्रिसिल (Crisil) के मुख्य अर्थशास्त्री के अनुसार, सामान्य से ऊपर वर्षा का पूर्वानुमान एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है वर्षा का संतुलित वितरण। बारिश का कब, कहाँ और कितनी हो रही है अगर बारिश सही समय पर सही जगह पर होती है तभी उसका फायदा खेती और किसानों को मिलता है। वर्ना ज्यादा बारिश भी नुकसान कर सकती है जैसे बाढ़ की स्थिति या फसल बर्बाद होगा।

बराबर और संतुलित बारिश से चलता है सप्लाई चेन

खेती सिर्फ फसल उगाने तक सीमित नहीं है। उसके बाद फसल को मंडी तक लाना, स्टोर करना, दूसरे राज्यों में भेजना – यह सब एक सप्लाई चेन का हिस्सा होता है। अगर बारिश हर इलाके में संतुलित तरीके से हो, तो यह सप्लाई चेन भी बेहतर तरीके से काम करता है। लेकिन अगर कहीं बहुत ज्यादा और कहीं बिल्कुल नहीं बरसी, तो दिक्कतें बढ़ जाती हैं। सामान्य या above-normal बारिश का आंकड़ा (जैसे 103% या 105%) सिर्फ एक संकेत है। असली असर तब होता है जब वो बारिश वक्त पर और जरूरत की जगहों पर हो। इसलिए बारिश का सही वितरण (distribution) ही खेती के लिए जरूरी है।

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