
इस सप्ताह पहाड़ी राज्यों में पश्चिमी विक्षोभ की श्रृंखला सक्रिय है। हालांकि, ये मौसम प्रणालियां हल्की से मध्यम तीव्रता की रही हैं। जनवरी में अभी तक सभी पहाड़ी राज्यं में बर्फबारी की भारी कमी बनी हुई थी। उत्तराखंड में यह कमी 80% तक थी, जो इस सप्ताह मामूली रूप से सुधरी। लेकिन 1 जनवरी से 16 जनवरी तक उत्तराखंड में बर्फबारी की कमी 77% बनी हुई है। अगले सप्ताह इसमें कुछ सुधार की उम्मीद है।
दो दिन पहाडों पर बारिश और बर्फबारी: कल 18 जनवरी को एक नया पश्चिमी विक्षोभ पश्चिमी हिमालय पहुंचेगा, लेकिन इसका उत्तराखंड पर कम असर होगा। इसके बाद 21 जनवरी को एक और पश्चिमी विक्षोभ आएगा, जो 23 जनवरी तक सक्रिय रहेगा। इस मौसम प्रणाली से उत्तराखंड में दो दिन तक अच्छी बारिश और बर्फबारी होने की उम्मीद है।
मैदानी इलाकों और पहाड़ों में असर: इस पश्चिमी विक्षोभ के साथ मैदानी इलाकों में एक प्रेरित चक्रवाती परिसंचरण (इंड्यूस्ड सर्कुलेशन) भी बनेगा। ये दोनों मिलकर मैदानी इलाकों में बारिश और पहाड़ी क्षेत्रों में बर्फबारी को तीव्र बनाएंगे। यह परिसंचरण 22 जनवरी को दिल्ली और हरियाणा के आसपास सक्रिय रहेगा और 23 जनवरी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश और तराई के क्षेत्रों की ओर बढ़ेगा। उत्तराखंड में इन दो दिनों में भारी बारिश और बर्फबारी की संभावना है। तराई के क्षेत्र हिमालय पर्वत की तलहटी में स्थित वो भूभाग हैं, जो पहाड़ों और मैदानी इलाकों के बीच स्थित होते हैं। तराई शब्द का अर्थ "निचला और नम क्षेत्र" होता है।
इन क्षेत्रों में भारी बारिश/बर्फबारी खतरा: उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में भारी बारिश और बर्फबारी का अधिक खतरा है। उत्तराखंड के निचले और मध्य क्षेत्र भी खराब मौसम की चपेट में आ सकते हैं। गढ़वाल क्षेत्र में भी व्यापक बारिश और बर्फबारी होगी। कुमाऊं क्षेत्र के पिथौरागढ़, बागेश्वर और चंपावत में तेज बारिश और कुछ जगहों पर ओलावृष्टि हो सकती है। वहीं, गढ़वाल क्षेत्र के रुद्रप्रयाग, टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी, केदारनाथ और चमोली में बर्फबारी और ओलावृष्टि का खतरा रहेगा।
मौसम में सुधार, लेकिन सतर्कता जरूरी: आने वाला मौसम उत्तराखंड में बारिश और बर्फबारी की कमी को कुछ हद तक पूरा कर सकता है। हालांकि, इन दो दिनों के दौरान यात्रा करने वाले लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। खराब मौसम के बाद भी पहाड़ी इलाकों में सावधानी बरतनी जरूरी है, क्योंकि बर्फबारी और बारिश के कारण क्षेत्र लंबे समय तक प्रभावित रहते हैं।