रविवार को इसरो (ISRO) ने भारत के अब तक के सबसे भारी और उन्नत संचार उपग्रह CMS-03 (GSAT-7R) को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया। लगभग 4,400 किलोग्राम वजनी यह उपग्रह पूरी तरह स्वदेशी रॉकेट LVM3-M5 (‘बाहुबली’ रॉकेट) से श्रीहरिकोटा स्पेसपोर्ट से छोड़ा गया। यह उपलब्धि भारत की अंतरिक्षीय महत्वाकांक्षाओं में एक नए युग की शुरुआत है, जो न केवल भार वहन क्षमता बल्कि वैज्ञानिक दक्षता, इंजीनियरिंग कौशल और रणनीतिक आत्मनिर्भरता का भी प्रतीक है।
नया रिकॉर्ड: CMS-03 का सफल प्रक्षेपण
CMS-03 उपग्रह को भारतीय नौसेना के लिए विकसित किया गया है ताकि हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षित संचार प्रणाली को और सशक्त किया जा सके। रविवार को शाम 5:26 बजे (IST) इसे जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। 15 साल की आयु वाले इस उपग्रह में मजबूत एन्क्रिप्शन सिस्टम, हाई-कैपेसिटी ट्रांसपोंडर्स और मल्टी-बैंड डेटा व वॉइस कवरेज की सुविधा है। यह भारत की समुद्री सुरक्षा और निगरानी क्षमता में बड़ा बदलाव लाने वाला कदम है।

Courtesy: www.isro.gov.in
इस मिशन ने न केवल भारत द्वारा प्रक्षेपित अब तक के सबसे भारी उपग्रह का रिकॉर्ड बनाया, बल्कि LVM3 रॉकेट की वहन क्षमता को भी 10% तक बढ़ा दिया, वह भी बिना किसी हार्डवेयर परिवर्तन के सिर्फ स्मार्ट मिशन डिज़ाइन और दक्षता सुधारों के ज़रिए।
LVM3-M5: ‘बहुबली’ रॉकेट की ताकत और तकनीक
LVM3 (‘बहुबली’) भारत की रॉकेट विज्ञान की सर्वोच्च उपलब्धि है। 43.5 मीटर ऊंचा और 640 टन वजनी यह रॉकेट तीन चरणों में काम करता है:
• दो S200 ठोस बूस्टर जो शुरुआती चरण में शक्तिशाली थ्रस्ट देते हैं।
• L110 लिक्विड कोर स्टेज, जिसमें दो विकस इंजन लगे हैं जो निरंतर बल प्रदान करते हैं।
• C25 क्रायोजेनिक अपर स्टेज, जिसमें अत्यधिक ठंडे हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का उपयोग कर अत्यंत सटीक ऑर्बिटल नियंत्रण किया जाता है।

Courtesy: www.isro.gov.in
इस रॉकेट की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके सभी प्रमुख हिस्से, जिनमें क्रायोजेनिक इंजन जैसी कभी प्रतिबंधित तकनीकें भी शामिल हैं, भारत में ही विकसित की गई हैं। CMS-03 मिशन में इसरो ने पहली बार अंतरिक्ष में C25 इंजन को दोबारा प्रज्वलित (Reignite) कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया, जिससे भविष्य में एकाधिक कक्षा (multi-orbit) मिशनों की संभावना खुली।
क्यों महत्वपूर्ण है ‘बाहुबली’: आत्मनिर्भर भारत की मिसाल
‘बहुबली’ रॉकेट केवल एक तकनीकी सफलता नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता की मिसाल है। अब तक भारत के भारी उपग्रहों को विदेशी रॉकेट्स पर निर्भर रहना पड़ता था, जिससे लागत बढ़ती थी और रणनीतिक नियंत्रण सीमित रहता था। लेकिन CMS-03 के सफल प्रक्षेपण के साथ भारत ने इस निर्भरता को समाप्त कर दिया है। अब देश अपने सबसे भारी और सुरक्षा-संवेदनशील उपग्रहों को स्वयं अंतरिक्ष में भेजने में सक्षम है।
यह उपलब्धि न केवल गर्व का विषय है, बल्कि भौतिकी और इंजीनियरिंग के उत्कृष्ट प्रयोग का परिणाम भी है:
• ठोस, द्रव और क्रायोजेनिक चरण न्यूटन के तीसरे नियम का प्रयोग कर 640 टन वजनी रॉकेट को पृथ्वी से ऊपर उठाते हैं।
• क्रायोजेनिक ईंधन का नियंत्रण उन्नत तरल गतिकी (Fluid Dynamics) और तापगतिकी (Thermodynamics) के सिद्धांतों पर आधारित है, जो भारत को अग्रणी अंतरिक्ष शक्तियों में शामिल करता है।
•यह सफलता ‘आत्मनिर्भर भारत’ (Atmanirbhar Bharat) का जीवंत उदाहरण है, जो दिखाती है कि विज्ञान और तकनीक में निवेश कैसे राष्ट्रीय सुरक्षा और प्रगति की नींव बन सकता है।
निष्कर्ष: भविष्य की उड़ान की ओर
LVM3 ‘बाहुबली’ रॉकेट के साथ भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र वैज्ञानिक, रणनीतिक और आर्थिक रूप से नए युग में प्रवेश कर चुका है। CMS-03 की सफलता से भारतीय नौसेना को हिंद महासागर क्षेत्र में संचार की सर्वोच्च क्षमता प्राप्त होगी। साथ ही, यह भारत की वैश्विक अंतरिक्ष स्थिति को सशक्त करेगा, विदेशी निर्भरता घटाएगा और कम लागत में लॉन्च सेवाओं की पेशकश को बढ़ावा देगा। छात्रों और विज्ञान प्रेमियों के लिए यह सिर्फ एक रॉकेट लॉन्च नहीं, बल्कि यह प्रमाण है कि सतत वैज्ञानिक अनुसंधान, स्वदेशी नवाचार और टीमवर्क से क्या कुछ हासिल किया जा सकता है। इसरो के आगामी मिशन जैसे गगनयान मानव अंतरिक्ष मिशन और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की योजना के लिए यह उपलब्धि एक मजबूत नींव रखती है।
‘बहुबली’ अब भारत का अंतरिक्ष पासपोर्ट बन चुका है-शक्तिशाली, स्वदेशी और दूरदर्शी।
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