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[Hindi] प्री-मॉनसून सीज़न में क्यों गिरती है खतरनाक बिजली

July 6, 2017 2:38 PM |

Lightning_rain in Bihar and Jharkhandभारत में अप्रैल से मई तक होने वाली वर्षा को प्री-मॉनसून वर्षा कहा जाता है। आमतौर पर 1 जून को केरल में मॉनसून दस्तक देता है जिसे उत्तर भारत तक सभी भागों को कवर करने में लगभग एक महीने का समय लग जाता है। हालांकि 1 जून से ही देश के किसी भी इलाके में होने वाली बारिश हो मॉनसून वर्षा के आंकड़ों में जोड़कर देखा जाता है भले ही मॉनसून सभी भागों में ना पहुंचा हो।

उल्लेखनीय यह है कि प्री-मॉनसून सीज़न में होने वाली बारिश के दौरान बिजली कड़कने-चमकने की घटनाएँ मॉनसून सीज़न में होने वाली बारिश के मुक़ाबले कहीं अधिक होती हैं। प्री-मॉनसून सीज़न में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के कई इलाकों में बिजली गिरने की भी घटनाएँ होती हैं। इसमें उत्तरी बिहार और इससे सटे पश्चिम बंगाल के भागों में कई बार भीषण वज्रपात के चलते व्यापक रूप में जान और माल को नुकसान पहुंचता है। सुपौल, अररिया, किशनगंज और पुर्णिया जैसे बिहार के कई इलाकों

Capture Bihar rain 600

अगर कारणों पर नज़र डालें कि मॉनसून से पहले होने वाली बारिश में बिजली गिरने की घटनाएँ अधिक क्यों होती हैं और मॉनसून वर्षा के दौरान क्यों कम गरजते हैं बादल तो इसका प्रमुख कारण है बादलों का स्वरूप। प्री-मॉनसून सीज़न में अप्रैल से जून के बीच तापमान अधिक होता है ऐसे में जब भी आर्द्रता बढ़ती है तब अचानक बनने वाले बादल गरजने-चमकने वाले बादल होते हैं। इन्हें कन्वेक्टिव क्लाउड कहा जाता है।

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कन्वेक्टिव क्लाउड यानि गरज वाले बादल ज़मीन से 3-4 हज़ार फुट ऊपर बनते हैं और इनकी मोटाई बहुत अधिक होती है। कभी-कभी ऐसे बादलों की मोटाई 40 से 50 हज़ार फुट तक पहुँच जाती है। हालांकि ऐसे बादल बड़े दायरे को कवर नहीं करते। इन बादलों से बिजली गिरने, भीषण गर्जना होने और तेज़ हवाओं के साथ बारिश होने की संभावना होती है। ऐसे बादल क्षेत्र विशेष को भरी नुकसान पहुंचा सकते हैं।

दूसरी ओर मॉनसून सीजन में बनने वाले बादल अपेक्षाकृत बहुत मोटे नहीं होते और निचले तथा मध्यम ऊंचाई तक बनते हैं जिससे मॉनसूनी बारिश के साथ तेज़ गर्जना और बिजली कड़कने या गिरने की घटनाएँ कम होती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मॉनसून सीज़न में तापमान कम हो जाता है और आर्द्रता व्यापक रूप में बढ़ जाती है। मॉनसून सीजन में बनने वाले बादल पतले होते हैं और निचली या मध्यम ऊंचाई पर बनाते हैं इसलिए अधिक बारिश देने वाले बादलों को भी रडार या लाइटनिंग डिटेक्टर ट्रेस नहीं कर पाते हैं। यह अलग बात है कि यही बादल देश भर में व्यापक रूप में बारिश देते हैं।

Image credit: Catch News

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