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[Hindi] अल नीनो उम्मीद से ज़्यादा बुरा असर डाल सकता है मॉनसून 2019 पर

April 17, 2019 12:33 PM |


प्रशांत महासागर में भूमध्य रेखा के पास समुद्र की सतह का तापमान आखिरकार उस स्तर पर पहुंच गया, जहां अल-नीनो के अस्तित्व में होने की घोषणा की जाती है। अब अल-नीनो के अस्तित्व में आने की औपचारिक रूप से घोषणा हो गई है। लगातार तीन-तीन महीनों के तीन चरणों का औसत तापमान 0.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहा। पिछले सप्ताह के बाद इस सप्ताह भी प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान औसत से ऊपर बना रहा।

El Nino temperatures

हालांकि पिछले सप्ताह नीनो इंडेक्स 3.4 में समुद्र की सतह का तापमान गिरा था। इस कमी के बावजूद तापमान औसत से ऊपर रहा। उल्लेखनीय है कि नीनो इंडेक्स 3.4 में तापमान की स्थिति भारत के मॉनसून के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है।

अब 2019 के ग्रीष्म ऋतु में अल-नीनो के अस्तित्व में रहने की संभावना 60% है। मॉनसून सीजन में भी स्थिति यही रहेगी। उसके बाद इस संभाव्यता में मामूली गिरावट आएगी। लेकिन शीत ऋतु यानी सर्दियों के मौसम में भी अल नीनो के अस्तित्व की संभाव्यता 50% है।

अल नीनो के प्रकार और मॉनसून 2019 पर इसका प्रभाव

इसमें जो चिंता का सबसे बड़ा कारण है वह है अल-नीनो के प्रकार। अल-नीनो कई प्रकार के होते हैं और मॉनसून पर इसके असर भी अलग-अलग देखने को मिलते हैं।

  • सामान्य अल-नीनो: सामान्य अल-नीनो सबसे अधिक देखा जाता है। यह उस स्थिति को कहते हैं, जब समूचे प्रशांत महासागर की सतह का तापमान एक समान होता है।
  • कैनोनिक अल-नीनो: यह उस स्थिति को कहा जाता है जब नीनो 1+2, नीनो 3.4 रीजन के मुकाबले पहले गर्म हो जाता है।
  • मोडोकी अल-नीनो: यह अल-नीनो की उस स्थिति को कहा जाता है जब प्रशांत महासागर के केवल मध्य भागों में तापमान गर्म होता है, जबकि बाकी क्षेत्र अपेक्षाकृत ठंडे होते हैं।

वर्ष 2019 में इस समय अल-नीनो की जो स्थिति है, वह मोडोकी अल-नीनो के समान लग रही है। जैसा कि ऊपर बताया गया, इस समय प्रशांत महासागर का मध्य भाग, बाकी क्षेत्रों के मुकाबले अधिक गर्म है। ऐसी स्थिति में हम देखते हैं कि प्रशांत महासागर के मध्य भागों से उठने वाली गर्म हवा पश्चिमी प्रशांत यानी दक्षिणी एशिया की तरफ मुड़ जाती है। गर्म हवा दक्षिण पूर्व एशिया में नीचे आती है, जो आमतौर पर स्थितियों को बदलने में कुछ भूमिका अदा करती है और भारत के क्षेत्र को प्रभावित करती है। ऐसे में भारत में सामान्य अल-नीनो के मुकाबले बारिश में कमी की आशंका ज्यादा रहती है।

अल-नीनो के प्रकार और इसकी क्षमता में कोई परस्पर संबंध नहीं है। उदाहरण के तौर पर एक कमजोर अल-नीनो भी भीषण अकाल का कारण बन सकता है। जैसा हमने 2009 के मॉनसून में देखा था, जब कमजोर अल-नीनो के बाद भी मॉनसून बेहद कमजोर रहा और महज 78% बारिश हुई थी।

इसी तरह एक सशक्त अल-नीनो में मॉनसून बहुत खराब नहीं होता और साधारण सूखा ही देखने को मिलता है, जो 2015 के मॉनसून में हुआ था, जब सामान्य से कम लेकिन 2009 से अधिक 86% बारिश हुई थी।

वर्ष 2019 के इस अल-नीनो को भी साधारण अल-नीनो माना जा रहा है। लेकिन अल-नीनो के प्रकार यानी मोडोकी अल-नीनो को ध्यान में रखते हुए हमें इस बात का डर है कि कहीं इस बार अल-नीनो का मॉनसून पर असर हमारी उम्मीद से ज्यादा खराब ना हो।

इसे ध्यान में रखते हुए स्काईमेट ने मॉनसून पूर्वानुमान जारी करते समय यह बताया था कि इस बार मॉनसून कमजोर रहेगा। स्काइमेट ने दक्षिण-पश्चिम मॉनसून 2019 के अपने पूर्वानुमान में 93% बारिश की संभावना जताई है और 5% का एयर मार्जिन बताया है।

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Image credit: somthingsbrewing

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