यूरोप की तरह भारत के पर्यटन स्थल भी गर्मी और जलवायु बदलाव से प्रभावित
यूरोप के समुद्री तटों की तरह भारत के भी कई प्रसिद्ध पर्यटन स्थल अब जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की चपेट में हैं। तेज गर्मी, समुद्र तटों का कटाव और मौसम की अनिश्चितता अब भारत के लिए भी सामान्य होती जा रही है। आइए जानें कैसे भारत के ‘समर एस्केप्स’ अब गर्मियों में राहत की जगह चिंता का कारण बनते जा रहे हैं।
समुद्र तटों का कटाव: गोवा, पुरी और चेन्नई सबसे ज्यादा प्रभावित
भारत के तटीय पर्यटन स्थल जैसे गोवा, पुरी और चेन्नई अब स्थायी तटीय कटाव (Coastal Erosion) से जूझ रहे हैं। अध्ययन बताते हैं कि कई हिस्सों में भारत का समुद्र किनारा 30% तक पीछे खिसक चुका है। लहरों की तीव्रता, बेतरतीब निर्माण और समुद्र स्तर में बढ़ोतरी इसके प्रमुख कारण हैं, जिससे स्थानीय पर्यटन उद्योग पर नकारात्मक असर पड़ा है।
गर्मी का बढ़ता कहर: पुराने समर डेस्टिनेशन अब असहनीय
2024 की प्री-मॉनसून गर्मी ने दिल्ली, जयपुर और नागपुर जैसे शहरों में 45°C से ऊपर तापमान दर्ज किया। इस तेज़ गर्मी की वजह से लोग पारंपरिक गर्मी की छुट्टियों के स्थानों से दूरी बना रहे हैं और अब सिक्किम, मेघालय और उत्तराखंड जैसे ठंडे स्थानों की ओर रुख कर रहे हैं।
समुद्री रेत हो रही गायब: मुंबई और विशाखापत्तनम पर असर
जैसे स्पेन के मोंटगट में समुद्र तट सिकुड़ रहे हैं, वैसे ही मुंबई और विशाखापत्तनम में भी भारी मात्रा में रेत का नुकसान हो रहा है। सैटेलाइट आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक दशक में हजारों वर्ग मीटर समुद्री किनारे की रेत खत्म हो चुकी है, जिससे पर्यटन गतिविधियों के लिए जगह कम हो गई है।
अनिश्चित मौसम: पहाड़ी पर्यटन भी नहीं रहा सुरक्षित
अब न केवल समुद्र तट, बल्कि हिल स्टेशनों पर भी मौसम का कहर देखने को मिल रहा है। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में बढ़ी चक्रवातीय गतिविधियों के कारण भूस्खलन, बाढ़, रोड ब्लॉकेज जैसी समस्याएं सामान्य हो गई हैं, जिससे यात्रा योजनाएं रद्द हो रही हैं।
समाधान की कोशिशें: जलवायु सहनशील पर्यटन की ओर कदम
मुंबई और कोलकाता जैसे शहरों में हीट एक्शन प्लान, तटीय सुरक्षा योजनाएं और सस्टेनेबल टूरिज्म मॉडल्स पर काम शुरू हो चुका है। हालांकि, पूरे भारत में ऐसे प्रयासों की जरूरत है ताकि भविष्य में जलवायु बदलाव से पर्यटन स्थलों को बचाया जा सके।
पर्यावरण-संवेदनशील पर्यटन ही भविष्य है
जलवायु परिवर्तन अब कोई दूर की चिंता नहीं, बल्कि आज की सच्चाई है। अगर समय रहते स्मार्ट प्लानिंग, पर्यावरण अनुकूल निवेश, और जलवायु-संवेदनशील नीतियां अपनाई जाएं, तो भारत के समर डेस्टिनेशन को आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाया जा सकता है।
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